यूँ ही राह चलते चलते - 15

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यूँ ही राह चलते चलते -15- रजत तो बस के बाहर के अप्रतिम सौंदर्य में खोये थे, यह अस्वाभाविक भी नहीं था चारों ओर दूर दूर तक फैली ऊँची नीची ढलानों पर छायी हरियाली मानो, धरती अपनी हरी चुनरिया हवा में लहरा-लहरा कर अपने में मगन नाच रही हो। दूर पर धरती रूपी गोरी के प्रहरी देवदार जैसे वृक्ष सावधान की मुद्रा में तने खड़े थें। कही-कहीं स्वस्थ भूरे या काले चकत्तों वाली धवल गायें देख कर अनायास ही आभास होता कि अभी कहीं से चितचोर मुरलीधर की वंशी की मधुर तान भी सुनाई पड़ जाएगी। वो लोग ज्यूरिख की