एक अप्रेषित-पत्र - 3

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एक अप्रेषित-पत्र महेन्द्र भीष्म रंजना रंजना मेरे ऑफिस की नेत्री है। चपरासी से लेकर बॉस तक सभी से वह एक ही अन्दाज में मिलती। सभी के साथ उसका व्यवहार निरपेक्ष रहता। ऑफिस में ऐसा कोई नहीं था, जो उसे पसन्द न करता हो। चाहे वह पोपले मुँह वाले बड़े बाबू राधेश्याम हों या खिजाब लगाकर आने वाले ऑफिस सुपरिटेण्डेण्ट मौलाना बदरुद्‌दीन हों, जिनकी मेंहदी लगी दाढ़ी की सुन्दरता में ग्रहण लगाते पान से गन्दे हो चुके दाँत और लटकते मसूड़ों के हरे रंग जैसी थैलियाँ, जो उनके हँसने पर सामने वाले को अपनी आँखें फेरने पर मजबूर कर देती थीं।