1. हमारे प्रेम के अमरत्व का पल तुम्हारा स्वर सदा की तरह, आत्मीयता के चरम बिंदु सा कोमल था. आगे महाभारत है, अब वापस आना नहीं होगा. तुम मेरी शक्ति हो, तुम्हारे नयन सजल हुए, तो मैं पराजित हो जाऊंगा. नहीं माधव !! और मैंने, आतुर खारे जल को, पलकों तले, कंकड़ बन जाने दिया था. चुभते हुए उन कंकड़ों ने, तुम्हारे कमल नयनों में बिखर गयी ओस की नमी देखी थी. क्षितिज की ओर जाते, रथ के पहियों ने, रेणु पर्जन्य बना दिए थे. उन्होंने सब कुछ ढक दिया था. संभवतः उस पल में स्तंभित करने के लिए.