बहीखाता - 45

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बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 45 मनहूस ख़बर दिसंबर का महीना था। मैं ज़रा देर से ही उठी। इतनी ठंड में किसका उठने को दिल करता है। मैंने पर्दे हटाये तो अजीब-सा उदास करने वाला दिन था। उदास दिन को देखकर मेरा दिल भी उदास हो गया। कुछ देर बाद ही हरजीत अटवाल का फोन आया, “चंदन साहब नहीं रहे।“ चंदन साहब की मृत्यु की ख़बर सुनकर पता नहीं मैं क्यों रोने लगी। कितनी ही देर रोती रही। व्यक्ति का क्या है ? किस तरह उन्होंने जिस सम्पत्ति को बचाने के लिए कितने झूठ बोले थे,