कुछ इस तरह हो गई है ज़िन्दगी किमीठी तो सुगर थी और तारीफ चाय की होती रहीये कैसा दस्तूर है दुनिया का ये देख कर प्याला भी हैरान हैलोग जिसके बिना चाय को पी भी नहीं सकता अक्सर उसे पी के तोड़ देता हैइस ज़िन्दगी से ज़िंदगी भर का इकरार करना हैअब बहुत हुई आशिक़ी कुछ यार करते हैं।।वो बरबाद कर के खुश हो रहा था।खुद की बरी आई तो सर पीटने लगा।।ये आशिक़ी नहीं है प्रकृति है।जितना भी दिया है हिसाब कर के लेगी।।उनकी आंखों में काली घटाए उतार आई है।काजल की तो इतनी गहराई हो नहीं सकती।।ये नज़र