बहीखाता - 44

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बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 44 अविश्वास और तलाश चंदन साहब द्वारा घर बेचने पर तो मैंने रोक लगवा दी थी, पर उसके बाद कुछ नहीं किया। चाहिए तो मुझे यह था कि घर में से और दिल्ली वाले फ्लैट में से अपना हिस्सा माँगूं, पर इस बात पर बेपरवाह और सुस्त ही रही। शायद अपनी ज़िन्दगी में खुश थी इसलिए किसी सिरदर्दी से बचना चाहती थी। चंदन साहब तो आराम से बैठे थे। दिल्ली वाला फ्लैट उन्होंने किराये पर दे दिया था, वहाँ से किराया आता था। यहाँ भी घर का एक हिस्सा किराये पर