ढलवाँ लोहा

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ढलवाँ लोहा “लोहा पिघल नहीं रहा,” मेरे मोबाइल पर ससुरजी सुनाई देते हैं, “स्टील गढ़ा नहीं जा रहा.....” कस्बापुर में उनका ढलाईघर है : कस्बापुर स्टील्ज़| “कामरेड क्या कहता है?” मैं पूछता हूँ| ढलाईघर का मैल्टर, सोहनलाल, कम्युनिस्ट पार्टी का कार्ड-होल्डर तो नहीं है लेकिन सभी उसे इसी नाम से पुकारते हैं| ससुरजी की शह पर : ‘लेबर को यही भ्रम रहना चाहिए, वह उनके बाड़े में है और उनके हित सोहनलाल ही की निगरानी में हैं..... जबकि है वह हमारे बाड़े में.....’ “उसके घर में कोई मौत हो गयी है| परसों| वह तभी से घर से ग़ायब है.....” “परसों?”