बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 24 डिप्रैशन नवंबर 1990 । चंदन साहब ने इंडिया जाने के लिए सीटें बुक करवा लीं। अबॉर्शन से दो दिन बाद की ही फ्लाइट थी। मैं तो अभी चलने योग्य भी नहीं थी, पर चंदन साहब मुझे उड़ान भरने के लिए कह रहे थे। मेरे पास उनका कहना मानने के सिवाय दूसरा कोई चारा भी नहीं था। चंदन साहब ने तो पूरी तैयारी की हुई थी। यह घर काउंसिल को किराये पर दे दिया था। घर का कुछ सामान बेच दिया था और कुछ भारत में कंटेनर बुक करवाकर भेज दिया