मेरी चार प्रेम कहानियों का गैर फिल्मी अंत

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प्रेम एक ऐसा अनोखा रोग है जिसकी पीड़ा भी सुखदायी होती है । यहां रोगी मरता नहीं जी जाता है । कबीर ने कहा है - प्रेम न बाड़ी उपजै प्रेम न हाट बिकाय राजा प्रजा जिहि रुचै सीस दिये लै जाय ।। आज़ का दौर कमिर्शियल है । बाजा़र पर पैसा हावी है । आज़ कबीर साहब होते तो कुछ इस तरह कहते - प्रेम न गली - गली उपजै प्रेम तो हाट बिकाय राजा प्रजा जिहि रुचै माल दिये लै जाय ।। आज़कल सच्चा व शु़द्ध प्रेम कॅालेजों व स्कूलों में उपजता है । यह प्रेम की होल