बहीखाता - 19

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बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 19 उड़ान मैं और हवाई जहाज एकसाथ उड़ रहे थे। जहाज अपनी स्पेश में और मैं अपनी स्पेश में। यह मेरा पहला हवाई सफ़र नहीं था, पर उड़ान पहली थी। एक भारी सी आवाज़ कानों में बार बार गूंज रही थी, ‘मेरा घर तेरा इंतज़ार कर रहा है।’ एकबार तो मैं सोच में पड़ गई थी कि कहीं यह शब्द-छलावा तो नहीं क्योंकि घर शब्द के पीछे तो मैं बहुत समय से दौड़ी घूमती थी और यह हाथ नहीं आ रहा था। फिर सोचा कि ये ठोस मुँह में से निकले