बहीखाता - 18

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बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 18 झूठा वायदा और चूड़ियों की खनक वैनकुवर के एयरपोर्ट से बाहर निकलते हुए सोच रही थी कि इस देश का दाना पानी चुगना मेरे भाग्य में बदा था। न ग्रंथी आँखें दिखलाते और न मैं कैनेडा आती। रविंदर रवि का नाम मेरे मन में आते ही लंबे कद का व्यक्ति सामने आ खड़ा होता। वह जाना-पहचाना लेखक था। मैंने उसकी रचनायें भी पढ़ी हुई थीं। मुझे यह सब अच्छा अच्छा लगा रहा था। मैं कस्टम से बाहर निकली तो रवि खड़ा मेरी ही प्रतीक्षा कर रहा था। उसके साथ मनजीत