बहीखाता - 15

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बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 15 सह-संपादक अब मैंने साहित्य में आगे के कदम रखने शुरू कर दिए थे। मेरा एक मुकाम बन चुका था। जब भी नई आलोचना की बात आती तो मेरा नाम सबसे आगे दिखता। नई पीढ़ी के कवि मुझसे ही अपनी किताब की आलोचना करवाना चाहते। मेरी निष्पक्षता की सभी दाद देते। दिल्ली से ही एक मैगज़ीन निकलता था - कौमी एकता। यह शायद उस समय के सभी परचों में सबसे अधिक छपता था। यह मैगज़ीन पंजाबी लोगों के हर घर का सिंगार बना हुआ था। इसमें हर प्रकार के पाठक के