बहीखाता - 12

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बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 12 माँ का पति भापा जी के निधन के बाद मैं ही घर में ऐसी थी जो घर का खर्च उठा रही थी। यद्यपि भापा जी की तनख्वाह मेरे से बहुत अधिक थी और हाथ खुला था, पर अब जैसा भी था, सारा जिम्मा मेरे सिर पर ही था। मेरा भाई तब पढ़ाई कर रहा था। मेरी अपनी माँ के साथ निकटता बढ़ने लगी। माँ मेरी बात को बड़े ध्यान से सुनती, बिल्कुल वैसे ही जैसे वह भापा जी की बात को सुना करती थी। मेरी राय घर में अंतिम राय