शौर्य गाथाएँ शशि पाधा (16) शांतिदूत यह प्रसंग वर्ष १९९८ के आस -पास का है | कारगिल के भयंकर युद्ध में कितने ही शूरवीरों ने अपने जान की आहुति दी थी | पूरे देशवासियों का हृदय दुःख, क्षोभ एवं ग्लानि के मिलेजुले भावों से छलनी था| युद्ध पहले भी होते रहे हैं, सीमाएँ पहले भी रक्तरंजित होती रही हैं, किन्तु यह युद्ध सीमाओं के साथ- साथ जनता के घरों में, टीवी स्क्रीन पर भी लड़ा जा रहा था| हरेक क्षण का वृतांत सामने देख कर शत्रु के प्रति आक्रोश और युद्ध में विजयी होने की भावना हर भारतीय के खून