प्रेम मोक्ष - 4

(18)
  • 8.7k
  • 3.1k

कैसे तैसे कर के अविनाश अपनी वीरान हवेली पर पंहुचा अभी रास्ते मे घटी अद्धभुत घटना से वो उभरा भी नहीं था | के हवेली पर पहुंच उसको एक और झटका लगा, हवेली बरसो से खाली पड़ी थी, इसकी देख भाल के लिए कई बार नौकर रखे थे मगर कोई टिक ना पाता, लेकिन आज हवेली विचित्र रूप मे ढली पड़ी थी? उसकी दीवारे एक दम साफ, ना कोई जाला ना ही कही धूल,हवेली के बाग़ की अच्छे से छटाइ करदी गई थी | हवेली अब वीरान खण्डर नहीं थी, बल्कि उसमे एक नई जान एक नई सुंदरता एक विरला आकर्षन