खबर

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इस प्रस्तुति में मैंने अपनी तीन कविताओं को सम्मिलित किया है . ये तीनों कवितायेँ मुख्यतः व्ययंग धारा की हैं . पहली कविता इस बात को दृष्टि गोचित करती है कि अख़बार जिस तरह के व्यक्तियों के बारे में खबर छापते हैं , वो अनुकरणीय नहीं होते , बल्कि चर्चा के कारण हो सकते हैं . इसी तरीके से बाकि दो कविताएँ आम जनता की धर्म के बारे में छद्म मानसिकता को दृष्टिगोचित करती है . (१) क्या खबर भी छप सकती है क्या खबर भी छप सकती है,फिर तेरे अखबार में,काम एक है, नाम अलग बस,बदलाहट किरदार में।