माँ : एक गाथा - भाग - 3

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ये माँ एक गाथा का तीसरा भाग है . इस भाग में माँ और शिशु के बीच छोटी छोटी घटनाओं को दर्शाया गया है . यदा कदा भूखी रह जाती,पर बच्चे की क्षुधा बुझाती ,पीड़ा हो पर है मुस्काती ,नहीं कभी बताती है,धरती पे माँ कहलाती है। शिशु मोर को जब भी मचले,दो हाथों से जुगनू पकड़े,थाली में पानी भर भर के,चाँद सजा कर लाती है,धरती पे माँ कहलाती है। तारों की बारात सजाती,बंदर मामा दूल्हे हाथी,मेंढ़क कौए संगी साथी,बातों में बात बनाती है,धरती पे माँ कहलाती है। छोले की कभी हो फरमाइस ,कभी रसगुल्ले की हो ख्वाहिश,दाल कचौड़ी