हिंदी -व्यंग्य में पीढ़ियों का अन्तराल यशवंत कोठारी काफी समय से हिंदी व्यंग्य का पाठक हूँ .अन्य भाषाओँ की रचनाएँ भी पढता रहता हूँ .उर्दू,गुजराती , मराठी ,अंग्रेजी व राजस्थानी में भी पढने के प्रयास किया है.पिछले कुछ वर्षों में हिंदी में नई पीढ़ी कमाल का लिख रहीं है.यहीं हाल अन्य भाषाओँ में भी है.टेक्नोलॉजी भी अपना कमाल दिखा रही है.तकनीक के हथियार के साथ लोग हुंकार भर रहे हैं ,पुरानों को कोई पढने की आवश्यकता नहीं समझता .पुराने लोगों ने बहुत मेहनत की,आजकल फटाफट का ज़माना है.शरद जोशी ने कुछ समय ही नौकरी की फिर फ्री लान्सिंग,परसाई जी