ईर्ष्या ने पाप का भागीदार बना दिया

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फिर एक दिन अपने संकोच को त्याग कर हिकमिद ने दर्जी से उसकी इन दुर्लभ स्थिति में आने का कारण पूछा तो दर्जी बोलामेरी इन। स्थितियोंं का कोई एक कारण नहीं है ब्लकि अनेकों है जिनके स्मरण भर से ही मेरी आत्मा तक देहल उठती है मेरा आपसे आग्रह है इसे पुुुेछने‌ का हठ ना करें। दर्जी की इन बातों ने हिकमीद की जिज्ञासा को और अधिक कर दिया और वो बोला तुम्हारी बातों ने मेरे मन को और भी वयाकुल कर दिया हैं अब तो तुम्हारी कथा सुने बिना मेरा मन शांत नहीं होगाजब दर्जी को लगा उसका और टालना व्यर्थ है