संवेदनाओं के स्वरः एक दृष्टि (6) सबसे कठिन बुढ़ापा..... जीवन जीना कठिन कहें तो, सबसे कठिन बुढ़ापा । हाथ पैर कब लगें काँपनें, कब छा जाये कुहासा । मात-पिता, दादा-दादी सब, खिड़की ड्योढ़ी झाँकें । नाराजी की मिले पंजीरी, हॅंसी खुशी वे फाँके । अपनों से अपनापन पाने, भरते जब - तब आहें । बेटे-नाती, नत-बहुओं से, सुख के दो पल चाहें । नित संध्या की बेला में वे, डगमग आयें - जायें । मन्दिर- चौखट माथा टेकें, सबकी खैर मनायें । वर्तमान के लिए बेचारे, विगत काल बिसरा दें । सोने के पहले ही वे तो, सबकी भोर सजा