कहानी है यह उस वक्त की,भारत पें जब अंग्रेजों का राज था ।तभी उनके वाणी से बरसा,एक एक शब्द क्रांती का आघाज़ था ।।परवशता के उन अँधेरों में,वो दियेसा एक प्रकाश था ।शत शत नमन भारत माँ के लाल को,जिनका नाम सुभाष था ।।बँरिस्टरी पिता कि,घर में खेलती संपत्ती,कुशाग्र बुद्धी और मेहनत से,पायी आय.सी.एस. कि डिग्री ।।खुशीयाँ पाई थी सारी,किसी बात कि कमी न थी ।पिता जानकीनाथ को अब बस,आस सुभाष कें शादी कि थी ।।फिर भी मातृभुमी पें जम के बैठी,गुलामी कि बेडीया उनको सताती थी ।अंग्रेजी अत्याचारों कि बातें,हर रोज ही भारत माँ सुनाती थी ।।बागी सुभाष को