उजड़ता आशियाना - जीवन पथ - 4

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किसी ने क्या खूब कहा है।जन्म हुआ तो मैं रोया और लोग हँसे, मौत आयी तो सब रोये मैं चैन से सोता रहा।ऊँची नीची जीवन पथ पर चलते चलते, हँसते रोते जन्म मरण का केल चला।जीवन की प्रति समर्पण और आस्था जीवन के स्वरूप को निश्चित करती है। हम इसे जिस रूप में जीना चाहते