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1.शामिल तो हो तुम मेरे दश्त-ए-तसव्वुर ,फ़क़त कमी यही कि नसीब में नहीं हो। दश्त-ए-तसव्वुर:ख्वाब[Desert of imagination] 2.मैंने कब चाहा फरिश्ता हो जाओ,ये भी कम है क्या इंसान हीं हो पाना। 3.धूप में , छाँव में,नहीं थकते कदम गाँव में। 4.ज्यों ज्यों मैं बढ़ता हूँ घटती जाती है,यूँ हीं मेरी उम्र गुजरती चली जाती है। 5.मैं मुस्लिम तुम हिन्दू दिन रात जगते सोते,रह गए हो बस तुम अखबार होते होते। 6.जमाने की पेशकश, ईमान डोलता है,शब्द हैैं खामोश आज वक्त बोलता है। 7.हवाओं पे लिखी लकीरों के जैसी,अपनी भी सच मे निशानी कुछ वैसी। 8.माँ की दुआओं का असर आया है,आज