जो भी कहूँगा - पंडालों से पनपता (अ)धर्म

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धर्म की समकालीन परिभाषा कहाँ से कहाँ पहुँच गयी है सितम्बर अक्टूबर माह में पहले गणपति के लिए और फिर दुर्गा-पूजा के नाम पर जो आयोजन हो रहे हैं उनमें कितना धर्म है और कितना अधर्म यह तय कर पाना बहुत मुश्किल है मेरा एक प्रिय प्रश्न है - इस देश को धार्मिक बनाने के लिए कितने मंदिरों की आवश्यकता है? पंडाल भी अस्थाई मंदिर ही हैं और उनका योगदान देश को धार्मिक बनाने में होता ही होगा इस विषय पर बने रहते हुए यही प्रश्न दूसरी तरह से पूछना पड़ेगा - इस देश को गणपति और दुर्गा पूजा के