कहीं मैं असंवैधानिक तो नहीं

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मेरा यह व्यंग्य आज के उस माहौल पर सशक्त कटाक्ष है, जहाँ बार-बार संविधान की दुहाई देकर लोगों को बोलने नहीं दिया जाता है, जबकी ऐसा करने वाले संविधान के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं. यह व्यंग्य निश्चित ही आपको हास्य के साथ-साथ सोचने के लिए भी बाध्य करेगा.