चोखेर बाली - 5

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राजलक्ष्मी ने आज सुबह से विनोदिनी को बुलाया नहीं। रोज़ की तरह विनोदिनी भण्डार में गई। राजलक्ष्मी ने सिर उठाकर उसकी ओर नहीं देखा। यह देखकर भी उसने कहा- 'बुआ, तबीयत ठीक नहीं है, क्यों? हो भी कैसे? कल रात भाई साहब ने जो करतूत की! पागल-से आ धामके। मुझे तो फिर नींद ही न आई।' राजलक्ष्मी मुँह लटकाए रही। हाँ-ना कुछ न कहा। विनोदिनी बोली- 'किसी बात पर चख-चख हो गई होगी आशा से। कुछ भी कहो! बुआ, नाराज मत होना, तुम्हारे बेटे में चाहे हज़ारों सिफ्त हों, धीरज ज़रा भी नहीं। इसीलिए मुझसे हरदम झड़प ही होती रहती है।'