सावन पूर्णिमा

  • 783
  • 252

सावन का महीना चल रहा था जिसमें बात हरियाली की होती है। सारा जहां हरा हरा दिखता है और अपनी मेहबूब की हाथों में हरी चूड़ियां न हो, माथे पे हरी बिंदिया न हो और बदन में हरी साड़ी न हो तबतक अपना सावन तो फीका ही लगता है। राधा बोली " ओय हीरो सावन आ गया है, क्या दूसरों की हरियाली से ही काम चलाना होगा क्या?" मैं कभी ना कहने वाला, ऐसा कभी होगा। तुरंत बाईक निकली चल दिया मनिहारी दुकान लेकिन वहां जाकर पड़ गया चक्कर में जब दुकानदार ने चूड़ी और बिंदिया का माप पूछ दिया।