कंचन मृग - 15. उद्विग्न नहीं, सन्नद्ध होने का समय है

  • 762
  • 159

15. उद्विग्न नहीं, सन्नद्ध होने का समय है उदयसिंह का मन अब भी अशान्त था। शिविर के निकट ही एक कच्चे बाबा का आश्रम था। वे उस आश्रम की ओर बढ़ गए। आश्रम के निकट ही गंगा का निर्मल जल प्रवाहित हो रहा था। बाबा जिनकी अवस्था पचास से अधिक नहीं रही होगी, एक वट वृक्ष के नीचे कुशा की आसनी पर पद्मासन मुद्रा में बैठे थे। उनके पास कुछ जिज्ञासु मार्गदर्शन हेतु इकठ्ठा थे। उदयसिंह ने निकट जा कर प्रणाम किया। बाबा के संकेत करते ही उदयसिंह भी निकट ही एक आसनी पर बैठ गए। उदयसिंह की आँखों को