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Susanta Sahu

Susanta Sahu

@susanta




*बड़ी अजीब सी 'बादशाही'  है ,*
 *' दोस्तों ' के 'प्यार' में ।*

 *ना उन्होंने कभी 'कैद' में रखा,*
 *न हम कभी 'फरार' हो पाए…...*

 

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*मैं चलता गया, रास्ते मिलते गये !*
*राह के काँटे फूल बनकर खिलते गये !!*
*ये जादू नहीं, कृपा है मेरे गुरुदेव की !*
*वरना उसी राह पर लाखों फिसलते गये !!*

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*सच्चाई की इस जंग मे ,*
       *कभी झूठे भी जीत जाते है..*

*समय अपना अच्छा न हो तो ,*
       *कभी अपने भी बिक जाते है,,,,*

 

*दूसरो पर विश्वास उतना ही रखना चाहिए कि विश्वास टूटने पर आप न टूटे*

 

*वक़्त के एक दौर में,*
*इतना भूखा था मैं..*

*कुछ न मिला तो,*
*धोखा ही खा गया..*

 

मोहब्बत नहीं है कोई किताबों की बाते!
समझोगे जब रो कर कुछ काटोगे रातें!
जो चोरी हो गया तो पता चला दिल था हमारा!
करते थे हम भी कभी किताबों की बाते!
 

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तुम यूं ही सादगी का बनाये रखो
मैं हरपल तेरा दीवाना बना रहूँगा... 
 



*हादसे कुछ 'जिन्दगी' में एेसे हो गये;*
*हम 'समंदर' से भी ज्यादा *गहरे हो गये..


 



*लफ्ज ही होते हैं इंसान का आइना, शक्ल का क्या, वो तो उम्र और हालात के साथ अक्सर बदल जाती हैं*


 

जो *पिता* के पैरों को छूता है
           वो कभी *गरीब* नहीं होता।

जो *मां* के पैरों को छूता है 
         वो कभी *बदनसीब* नही होता।

जो *भाई* के पैराें को छूता है 
         वो कभी *गमगीन* नही होता।

जो *बहन* के पैरों को छूता है 
       वो कभी *चरित्रहीन* नहीं होता। 

*जो गुरू के पैरों को छूता है*
         *उस जैसा कोई*
                *खुशनसीब नहीं होता*.......
 

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