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सुकू पाने को हाल-ए-दिल बया करने की कोशिश में हूं,, कागज ने रिश्ता तोड़ा , अब मैं स्याही की मोहब्बत में हूं,, कमबख्त यहां भी बेवफाई है,, सर्दियों में स्याही रूठ जाती है,, शुक्र है मैं रजाई की हिफाजत में हूं।।
#ज्योत कैसे करूं मैं अंतर यह ज्योति या ज्वाला, जल रही है वासना, हुआ प्रकाशित मन मेरा, यह मंजर देख ,उलझा हूं मैं भोला भाला, भिन्न-भिन्न सब नाम दे रहे, कोई #ज्योति कोई ज्वाला, सुनील नायक
कैसे करूं मैं अंतर यह #ज्योति या ज्वाला, जल रही है वासना, हुआ प्रकाशित मन मेरा, यह मंजर देख ,उलझा हूं मैं भोला भाला, भिन्न-भिन्न सब नाम दे रहे, कोई #ज्योति कोई ज्वाला, सुनील नायक
जिस्म के बाजार लगते हैं तेरे शहर में, तेरे शहर में वो इश्क की खुशबू नहीं है, लोग बिकते हैं तेरे शहर में,तेरा पूरा शहर भी,, मेरे गांव के टुकड़े की कीमत नहीं है।। सुनील नायक
जरूरत और मोहब्बत में ज्यादा फर्क नहीं है, जरूरत में मेहनत जान निकाल लेती है और मोहब्बत में महबूब जान ले लेता है।
वो मिले तो लिपट जाना सीने से,, खबर है सिर्फ दो और दिन रुकेंगे,, शहर के पंछी हैं जनाब,, कल किसी और डगर दिखेंगे
गालिब सवाल करते हैं , आप किताबों से प्यार करते हैं, हमने कहा शख्स आजमा लिए हमने, बहर हाल किताबों पर ही यकीन करते हैं। सुनील नायक
#मिट्टीकी "परिणाम" "परिणाम" यह एक ऐसा शब्द है जिसे सुनकर हर किसी की मनोस्थिति डोल जाती है ,वह व्यक्ति जो इसकी घोषणा के बाद सितारा होगा और वह जो इसे देखकर टूट जाएगा, घोषणा से ठीक पहले इन दोनों की मनोस्थिति कुछ खास अलग नहीं होती। जब आपकी जीवन से कुछ खास अपेक्षा नहीं होती, तब तो यह ठीक है परंतु अगर आप इसे जाने बिना सपनों के हिमालय की सबसे ऊंची चोटी पर जा बैठे हैं, तब इस दिवास्वप्न का अचानक से मिथ्या सिद्ध होना अमूमन कोई बर्दाश्त नहीं कर पाता। अच्छा फेसबुक चलाते वक्त हजारों बार आपने एक अंग्रेजी की पंक्ति पड़ी होगी मैं उसका हिंदी तर्जनुमा लिख रहा हूं," एक कागज का टुकड़ा आपका भविष्य निर्धारित नहीं कर सकता " ,भविष्य निर्धारण के विषय में तो मैं नहीं जानता पर हां वह कागज का टुकड़ा जो फिलहाल आपके हाथ में हैं आपका आने वाला एक घंटा निश्चित ही निर्धारित करता है। अगर आप वह एक घंटा निकाल लेते हैं तब तो यह कथन आपके लिए शत प्रतिशत सत्य है,परंतु हां एक सार्वभौमिक सत्य और सुन लीजिए हर कोई वह परिणाम के बाद का एक घंटा नहीं निकाल पाता। कई बार तो वह एक घंटा एक नन्ही जान से उसका जीवन छीन लेता है। आप में से भी, कोई जब "आत्महत्या" इस शब्द को सुनता होगा बड़ा ज्ञान पेलने की इच्छा होती होगी बिना परिस्थिति समझे विश्लेषण यह तो आज के समाज की प्रियतम क्रिया है। वैसे मैं इसके लिए आपको दोष नहीं दे रहा, अंततः जिम्मेदार तो व्यक्ति स्वयं होता है। परंतु समाज की कुछ धारणाएं हैं जो उसे घुटन में डाल देती हैं। परिवार की अपेक्षाएं जिन पर कई बार हम खड़ा नहीं उतर पाते ,जरूरी नहीं है कि हमने मेहनत नहीं कि ,कई बार परिणाम का पाला बदलने के लिए परिस्थितियां पर्याप्त होती हैं। बेशक कई बार गलत चयन भी एक कारण होता है जो कि स्वाभाविक है मनुष्य अपने जीवन में सभी फैसले सही नहीं लेता ,कई बार गलतियों और गलत फैसलों को जीवन भर साथ लेकर चलना पड़ता है। अब सीधी बात यह है कि इस परिस्थिति से कैसे बचा जाए ,वैसे कोई सटीक तरीका नहीं है परंतु हां अगर मनुष्य फल से ज्यादा ध्यान कर्म कर देता है ,तो इस परिस्थिति को आप स्वयं से कोसों दूर रख सकते हैं। परंतु फिर भी अगर ऐसा कुछ होता है तो मनुष्य का कर्तव्य है कि वह मजबूत और विवेकशील बना रहे। "हार गया तू इस डगर पर, मुसाफिर जीवन अभी बाकी है , शोक मना कर तू थोड़ा सा, उठ जा अभी डगर काफी है"
"परिणाम" "परिणाम" यह एक ऐसा शब्द है जिसे सुनकर हर किसी की मनोस्थिति डोल जाती है ,वह व्यक्ति जो इसकी घोषणा के बाद सितारा होगा और वह जो इसे देखकर टूट जाएगा, घोषणा से ठीक पहले इन दोनों की मनोस्थिति कुछ खास अलग नहीं होती। जब आपकी जीवन से कुछ खास अपेक्षा नहीं होती, तब तो यह ठीक है परंतु अगर आप इसे जाने बिना सपनों के हिमालय की सबसे ऊंची चोटी पर जा बैठे हैं, तब इस दिवास्वप्न का अचानक से मिथ्या सिद्ध होना अमूमन कोई बर्दाश्त नहीं कर पाता। अच्छा फेसबुक चलाते वक्त हजारों बार आपने एक अंग्रेजी की पंक्ति पड़ी होगी मैं उसका हिंदी तर्जनुमा लिख रहा हूं," एक कागज का टुकड़ा आपका भविष्य निर्धारित नहीं कर सकता " ,भविष्य निर्धारण के विषय में तो मैं नहीं जानता पर हां वह कागज का टुकड़ा जो फिलहाल आपके हाथ में हैं आपका आने वाला एक घंटा निश्चित ही निर्धारित करता है। अगर आप वह एक घंटा निकाल लेते हैं तब तो यह कथन आपके लिए शत प्रतिशत सत्य है,परंतु हां एक सार्वभौमिक सत्य और सुन लीजिए हर कोई वह परिणाम के बाद का एक घंटा नहीं निकाल पाता। कई बार तो वह एक घंटा एक नन्ही जान से उसका जीवन छीन लेता है। आप में से भी, कोई जब "आत्महत्या" इस शब्द को सुनता होगा बड़ा ज्ञान पेलने की इच्छा होती होगी बिना परिस्थिति समझे विश्लेषण यह तो आज के समाज की प्रियतम क्रिया है। वैसे मैं इसके लिए आपको दोष नहीं दे रहा, अंततः जिम्मेदार तो व्यक्ति स्वयं होता है। परंतु समाज की कुछ धारणाएं हैं जो उसे घुटन में डाल देती हैं। परिवार की अपेक्षाएं जिन पर कई बार हम खड़ा नहीं उतर पाते ,जरूरी नहीं है कि हमने मेहनत नहीं कि ,कई बार परिणाम का पाला बदलने के लिए परिस्थितियां पर्याप्त होती हैं। बेशक कई बार गलत चयन भी एक कारण होता है जो कि स्वाभाविक है मनुष्य अपने जीवन में सभी फैसले सही नहीं लेता ,कई बार गलतियों और गलत फैसलों को जीवन भर साथ लेकर चलना पड़ता है। अब सीधी बात यह है कि इस परिस्थिति से कैसे बचा जाए ,वैसे कोई सटीक तरीका नहीं है परंतु हां अगर मनुष्य फल से ज्यादा ध्यान कर्म कर देता है ,तो इस परिस्थिति को आप स्वयं से कोसों दूर रख सकते हैं। परंतु फिर भी अगर ऐसा कुछ होता है तो मनुष्य का कर्तव्य है कि वह मजबूत और विवेकशील बना रहे। "हार गया तू इस डगर पर, मुसाफिर जीवन अभी बाकी है , शोक मना कर तू थोड़ा सा, उठ जा अभी डगर काफी है"
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