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कोई है जो हमें बता सके कि सांसारिक जीवन से मुक्ति का कौन सा मार्ग सर्वोत्तम होगा। हम-आप इस तरह कब तक जीवन और मृत्यु के रंग में उलझे रहेंगे।कभी-कभी सोचता हूं कि हम सभी मनुष्य आखिर जीवन में क्या बदलाव चाहते है, क्यो संसार के अन्य जीव-जंतुओं वृक्षों लताओं पशु-पंक्षियो सागर जंगल जमीन पर्वत पहाड़ पठार का अतिशय विनाश करने की कवायद तेज हो गई है।यही सोच कर देख कर संसार से विरक्ति होने लगती है। सामाजिक जीवन पारिवारिक जीवन से मुक्ति पाने का मन करता है कि कहीं दूर जाऊं एकांत में अपने चित्त को एकाग्र करने का पूरा प्रयास करूं, मैंने संसार में बहुत से ऐसे लोगों को देखा है जो लोभ लालच लिप्सा धन दौलत घर परिवार के लिए क्या कैसे करें जिससे उनके घर परिवार इष्ट मित्र ही सुख समृद्धि के साथ जीवन यापन कर सके,बस इसके लिए परेशान रहते हैं।लेकिन मैंने कभी उनको मानवता या इंसानियत के लिए,करुणा प्रेम भाईचारा के लिए इतना ज्यादा उतावलापन नहीं देखा। मेरा कहने का आशय मात्र इतना है कि हम आखिर इंसान कब हो पाएंगे?क्या हम हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई बौद्ध पारसी जैन जातियों धर्मों में बटे रहेंगे? आखिर हम कब सोचेंगे कि हम सब इंसान हैं।हम सबको इंसानियत का धर्म मानकर उसके लिए काम करने की आवश्यकता है और सबको समता समानता हक हिस्सा में बराबरी का दर्जा मिले इसी को हम सब अपना मिशन बनाएं और अपने मिशन को कामयाब करने के लिए चुप्पी तोड़ने का काम करे।एक दूसरे से संवाद स्थापित करें एक दूसरे के सुख दुख में भागीदारी करें तभी यह संभव है कि हम सब मिलकर एक सुंदर संसार का पुनर्निर्माण कर सकते हैं। आज देखिए कहने को तो बहुत कुछ है जल की कमी हो रही है पर्यावरण का बहुत भारी नुकसान हो रहा है गर्मी तो मानो इस तरह से बढ़ रही है कि आने वाले समय में लोग अपने आप स्वत: ही जल जाया करेंगे। पेड़-पौधे पशु-पक्षी सब अस्त-व्यस्त त्रस्त हैं उनको भी जीवन जीने के लिए खुलापन का एक स्थान चाहिए जहां वे अपने जीवन को जी सकें।लेकिन हम मनुष्यों ने उनके उस स्थान को भी कब्जाने मे कोई कोर कसर नहीं छोड़ा है।हमने उनके लिए कहीं कोई स्थान नहीं छोड़ा जहां वे जी सके, रह सके चहचहा सकें उनकी भाषा बोली गीत संगीत की तरह संसार के मनुष्यो के मन मस्तिष्क को झकझोर सके। उससे एक आवाज निकले बचाना होगा प्रकृति को खुद को और सभी को। #मिट्टी #-------------------09984563563 जय हिंद जय भारत।
अतीत अब याद आने लगा है बचपन से लेकर जवानी तक की खट्टी मीठी यादे बार बार स्मृति में उभरती है।मन भारी हो जाता है।अब उम्र भी पचास के आसपास की हो गई है।जाहिर सी बात है कि इसका प्रभाव अब स्वास्थ पर दिखायी देने लगा है।बात बात मे चिड़चिड़ाहट होने लगती है।काम धंधा भी कोई खास नही है।आय से ज्यादा खर्च होता है।बीबी बच्चे मां बाप और घर परिवार सभी की कुछ ना कुछ जरूरते है इनको तो कैसे भी पूरा करना है।पढ़ाई लिखाई खाना पीना कपड़ा लत्ता दवा दारू के अलावा नात बात रिश्तदारी ब्याह शादी कथा भागवत सब कुछ देखना है इस छोटी सी कमाई से।दूसरा कुछ है भी तो नही कि कही और से कुछ रूपया पैसा आ जाय तो खर्चे की दिक्कत कम हो जाय।इन सब बातो के कारण कभी कभी मै हताश और निराश हो जाता हूँ कि आखिर कैसै गुजर बसर होगी फिर सोचता हूं कि हमारी जिंदगी तो फिर भी करोड़ो लोगो से बेहतर है कि दो समय का खाना मिल जाता है अच्छा खराब पहनने को मिल रहा है दवा दारु भी किसी तरह से हो ही रहा है।सिर पर एक छत है बिस्तर बिछौना भी है।मां बाप का साया है। आखिर कभी भी उनके बारे में भी सोचता हूँ तो दिल धक्क से हो जाता है।जाड़ा गर्मी बरसात हर मौसम उनके लिये दुख का पहाड़ ही तो है।ना रहने का कोई आसरा है कोई रोजी रोजगार भी स्थायी नही है खाने पीने को जो कुछ कच्चा पक्का मिल गया उसी से काम चलाना पड़ता है।कपड़ा लत्ता तो फटा पुराना मिल ही जाता है।उससे उनका काम चल ही जाता है।पर सोचता हूँ तो दिमाग को एक साथ सैकड़ो सांप डसने लगते है।इसे हम किस तरह सहते है क्या बीतती है हमारे साथ, बर्दास्त नही होता है लेकिन बर्दास्त करना पड़ता है।हमारे अंदर की मनुष्यता भी तभी तक जीवित रह सकती जब तक हम संवेदनाओ और करूणा को अपने हृदय में स्थान दे सकते है। जीवन जीने की कला मे यद्यपि सभी निपुण होते है पर संसार के प्रकृति के नियम परिवर्तन शील है दुख सुख की समान अनुभूति पा कर हम अपने आप को जांच परख सकते है।क्या यह सब लिखना पढ़ना कहना सुनना लाजमी है हमारे लिए।हम आखिर क्यों इतने निरीह और निर्दयी होते जा रहे है कि एक मेरी ही तरह का हाड़मास का इंसान गैर बराबरी क्यो सहता है।कारण है इसके पीछे देश मे चल रहा राजनैतिक तूफान ही सबको दिशा और दशा प्रदान कर रहा है।ना चाह कर भी लोग आपसी वैमनस्य रंजिश छुआछूत का शिकार हो रहे है। आंखे खोलने की जरुरत है भ्रम मिथको और परम्पराओ को तोड़ने की जरूरत है।इंसान को भी इंसान समझने की कोशिश करे और यदि आप यह करने में सफल हो जाते है तो यकीन देश मुस्करा देगा बच्चे बूढ़े और नौजवान सभी मुस्करा देगें। आप का अपना................... "मिट्टटी" 9984563563,9648563563........!
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