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Himanshu Kumar Pandey

Himanshu Kumar Pandey

@hkptunnagmailcom


मैं जानता हूँ
तुम्हारे अन्दर कोई ’क्रान्ति’ नहीं पनपती
पर बीज बोना तुम्हारा स्वभाव है।
हाथ में कोई 'मशाल' नहीं है तुम्हारे
पर तुम्हारे श्रम-ज्वाल से भासित है हर दिशा।
मेरे प्यारे ’मजदूर’
यह तुम हो जो
धरती की गहरी जड़ों को नापते हो अपनी कुदाल से
रखते हो अदम्य ’ज्योतिर्धर’।

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