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हर ख़्वाहिश को अपनी ख़ोते ही देखा है, मैंने कभी #माँ को चैन से सोते नहीं देखा है अपना दर्द सबसे छुपाकर ही रखती है वह, मैंने अक़्सर #माँ को तन्हाई में रोते ही देखा है.. #लेखक :हैदर अली ख़ान
नज़्म: #यह उदासियाँ..!!! आज #उदासियाँ बहुत तलाशी, कम्बख़्त कहीं नज़र नहीं आयीं, सूनी राहों पे निकल पड़ा, ख़ुद को उदासी भरा पाया, बस वहीं ठहर गया... जो #उदासियाँ हम बड़ी शिद्दत से ढूँढ रहे थे, वह कम्बख़्त! दिल के किसी क़ोने में मिली, #उदासियाँ तो हाथ लग गयीं, पर वह शख़्स, वह शख़्स नहीं... यह तोहफ़ा वह शायद! ज़िन्दगी भर उदास रहने के लिए दे गया, और फिर इस तरह वह मुझको उदास कर गया..😢 #लेखक : हैदर अली ख़ान
#ग़ज़ल ✍️✍️✍️ तेरी गोद में सर रखकर सो जाऊँ कभी यूँ तेरी बाहों में खो जाऊँ कभी यह आरज़ू, यह तमन्ना दिल में लिए फिरता हूँ, तू मेरी, मैं तेरा हो जाऊँ कभी तेरे आने का इंतजार हर रोज़ किया करता हूँ, तू आये तो घर अपना सजाऊँ कभी तू आँख बंद कर कोई दुआ माँग लेना, मैं सितारा बन आसमां में जो टूट जाऊँ कभी चराग़-ए-मुहब्बत अपने दिल में रोशन रखना, बहा लेना दो आँसू, जो बुझ जाऊँ कभी उनको देखे जैसे ज़माने हो गए, दिखा देना अपनी सूरत गर मर जाऊँ कभी.. तेरी गोद में सर रखकर सो जाऊँ कभी.... ----- लेखकः हैदर अली ख़ान ---------- अगर आपको मेरी यह रचना पसंद आई हो तो कृपया अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया अवश्य दें...~शुक्रिया
नज़्म: #वह इक सवाल... वह इक सवाल जो तूने किया था, मैं उसी का जवाब ढूँढ रहा हूँ, कभी सर्द रातों में, कभी घनघोर बारिशों में, कभी भूख प्यास में, कभी तन्हा तेरी याद में, कई सदियां गुज़ार दीं, यूँ तेरे इंतज़ार में, मैं आकर वहीँ रुक गया, जहाँ था तेरे ख़याल में, फिर वापस वहीँ उलझ गया, तेरे सवाल के जवाब में.... सच में जो इक सवाल तूने किया था, मैं अभी भी उसी का जवाब ढूँढ रहा हूँ... लेखक - हैदर अली ख़ान Copyright
#इक उधार सी ज़िन्दगी... तुझको खो कर बचा ही किया था, ज़िन्दगी में..! खोने के लिए.. बस इक उधार सी ज़िन्दगी जी रहा था.. तेरी यादों का कर्ज़ लिए.. माफ़ करना तेरी यादों को हम यूँ ही बुला लेते हैं जिससे कि यह साँसें चल सकें.. शायद! तू भूल गयी जो इक रोज़ तूने कहा था कि जब ज़िन्दगी वीरानियों के दौर से गुज़रने लगे.. तो....! तो मुझे याद कर लेना..! माफ़ करना आज फिर तुझे उतना ही याद किया, उतना ही तेरा नाम लिया.. जितना हर पल, हर घड़ी, हर वक़्त मैं तुझे याद किया करता था... तुझे याद है ना..! जब आसमान में कोई तारा टूटता था तू जल्दी से आँखें बंद करके दुआ मांगती थी और मुझे भी ऐसा करने को कहती थी... पर माफ़ जरूर करना आज मैंने टूटते तारे को देखकर कोई दुआ नहीं माँगी... क्यूँकि आज मैं तन्हा था! वही खुला आसमान, वही चमकते सितारे और वही मैं था.. पर तुम नहीं थी....! ----- लेखकः हैदर अली ख़ान ©Copyright
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