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Author Pawan Singh

Author Pawan Singh Matrubharti Verified

@authorpawansingh.367578
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बढ़ती जा रही है शायरों की तादात
लगता है इश्क़ ने किसी को नहीं छोड़ा

सितारों को नुमाइश में खलल पड़ता है
चांद पागल है अंधेरों में निकल पड़ता है

हज़ारों रावण निकलें है
आज एक पुतला जलाने

यहाँ तुम देखना रुतबा हमारा
हमारी रेत है, दरिया हमारा
कल पिताजी किसी से कह रहे थे
मोहब्बत खा गई लड़का हमारा

- कौशल

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मुझे कहाँ फ़ुरसत
मैं मौसम सुहाना देखूँ

मैं आपकी याद से निकलूँ
तो जमाना देखूँ

स्त्रियाँ काम से लौटते हुए भी काम पर ही लौटती हैं।

रूठी बेगम, उड़ते बर्तन
सब नज़ारे देखेंगे
चाँद को घर में लाने वाले
दिन में तारे देखेंगे

हैरत की बात है न
जब भी लिखना चाहा
आसमान ने
एक "प्रेम-पत्र"
धरा के लिए ,
कुछ लिख ही नही सका
बस, पिघल गया
"बारिश" बनकर

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ये ही ज़िंदगी है मेरे भाई
गली के हज़ार फेरे हम लगाते हैं
और कोई डॉक्टर इंजीनियर वाला
सात फेरों में उसे ले जाता है।

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कोई क्यूँ किसी का लुभाए दिल
कोई क्या किसी से लगाए दिल
वो जो बेचते थे दवा-ए-दिल
वो दुकान अपनी बढ़ा गए