छोटे शहरों के लड़कों का
पहला सपना होता है
'कैंची साइकिल' चलाना,
और जब वो सीख जाते हैं
साइकिल सीट पर बैठकर चलाना
तो उनकी साइकिल सीधी जाती है
उस 'लड़की' की गली में
जिसे वो मन ही मन चाहने लगे होते हैं
अगर हैंडल छोड़कर चलाने का हुनर
आ गया हो तो फिर बात ही क्या है!
दाढ़ी मूंछ की हल्की रेखाएं आने के साथ ही
उनके कंधों पर जिम्मेदारियां अपने आप आ
जाती हैं,
मिल में गेहूं पिसवाने से
जो जिम्मेदारी शुरू होती है
वो जल्द से जल्द 'सरकारी नौकरी'
ले लेने की जद्दोजहद में बदल जाती है,
ग्रेजुएशन के बाद भी अगर नौकरी
न मिली हो तो बेरोजगारी के ताने
उसे हर जगह अलग अलग तरीके
से लोग दे जातें हैं,
अगर कुछ साल और रहना पड़ा बिना नौकरी के
तो फिर
तुम्हारी शादी कैसे होगी...?
का डर भूत बनकर हर समय डराता है,
अगर किसी छोटे शहर के लड़के ने
देख लिया कोई बड़ा सपना
तो हो जाता है 'मजाक का पात्र'
हरेक 'नुक्कड़' का,
छोटे शहर के लड़के
छोटे-छोटे कदम ही चल पाते हैं
जीवन भर...