रेत के शहर का वो चांद कहां भुला पाएगा तुम्हे ! तुमने रात उतार कर लपेट दी थी तहों में और देर तक सितारों को देखती रही थी। मैं वहीं तुम्हारी मुस्कुराती आंखो और होंठों के बीच एक सुनहरा फूल रख रहा था और तुम रात रानी बन चांदनी सी बिखर गई थी।
-mahendr Kachariya