जोर जोर से भाई चिल्लाएं आएंगी बहने लुटेरी।।
रक्षाबंधन ख़ुशी का या दुःख का दस्तक है ? क्योंकि हम सबकी परिस्थितियां अलग अलग हो सकती हैं किन्तु यह वही सभ्य समाज है जिसमे एक भाई बहन का गला रेत देता है वहीँ दूसरा भाई संपत्ति को अकेला हड़प कर जाता है अपनी माशुका का जिक्र शान से करता हुआ माँ बाप को मना लेता है ।वहीँ बहन के प्रेमी का खुलासा होते ही उसकी समाज में नाक कट जाती है और वही रक्षक भक्षक बन जाता है
आज भी कई घरो में भाई भाई अथवा भाई बहन के सम्बन्ध सिर्फ समाज को दिखाने के लिए अपनों को खुश करने के लिए निभाए जाते हैं परन्तु भीतर से जुड़ाव या कह लें एक दूसरे के लिए सम्मान कत्तई नहीं होता ।
पितृसत्ता अपने ही बनाये हुए मक्कड़ जाल में स्वयं उलझ गया है
इस संजीदा विषय को अपने अख़बार में स्थान देने हेतु राष्ट्रिय दैनिक अख़बार आनन्दधारा के संम्पदकीय टीम की शुक्रगुजार हूँ