मजदूरी का सम्मान
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चिलचिलाती धूप में वो बनाता है मकान आलीशान
जिसका खुद के रहने के लिए भी नहीं होता मकान
पर उसके चेहरे पर रहता नहीं है कोई भी मलाल
रह जाएगा उसके ही काम का इस धरा पर निशान ।
स्त्री ,पुरुष और बच्चे ढो रहें हैं ईंट-गारा
चल रहा है उनका इस काम से ही घर सारा
धन की खातिर सह रहे हैं काम का बोझ
कोई शिकवा शिकायत नहीं, न कहीं है इशारा।
वैसे तो सभी विश्व में मजदूरी ही कर रहे हैं
अपने-अपने परिवारों का पेट भर रहे हैं
सभी करें एक-दूसरे के कामों का सम्मान
कहें, हम एक - दूजे को प्यार से धर रहे हैं।
आभा दवे
मुंबई