दिल का हाल सुनाऊ किसका
गहरे जख्म दिखाऊं किसको
हां नैनो में नीर भरे है
नैनो से नीर बहाऊं कैसे
उलझी मैं और मेरी लट
दोनो को सुलझाऊ कैसे
हा कहना है तुमसे कुछ तो
तुमको ये बतलाऊ कैसे
एक समंदर मेरे अंदर
खाली मैं कर जाऊं कैसे
दूर बसे हो इतने तुम
बोलो मैं चाय पिलाऊ कैसे
ये समाज है इतना कलुषित
रिश्तों की डोर निभाऊ कैसे
तुमको माना अपना ईश्वर
बोलो तुम तक आऊ कैसे
आदित्य यादव
-किरन झा मिश्री