धीरे - धीरे................................
धीरे - धीरे एक दिन सब कुछ खत्म हो जाएगा,
ख्वाहिशों की दौड़ रूक जाएगी,
अधूरे सपनों का ग़म भी फिका पड़ जाएगा,
एक दिन यूं ही हंस पड़ेगें खाने की मेज़ पर कि,
जिसकी हर मुराद पूरी हुई वो भी तो हमारी तरह ही,
रोटी - सब्ज़ी खा कर ही सो जाएगा.........................
धीरे - धीरे कोशिश कर आसमान तक पहुँचे थे,
लिख कर आए थे अपनी चाहत और,
कुछ आरज़ू भी लिख कर छोड़े थे,
फिर ज़मीन पर आकर भी वहीं काम रोज़ाना किया,
समय ढ़लता गया मगर हमने लिखना बंद ना किया,
सब्र करते रहे फिर भी कुछ ना कहा,
धीरे - धीरे हम भी समझ गए कि,
हमारा लिखा आसमान ने भी मिटा दिया........................
धीरे - धीरे एक दिन हर कोई एक जैसा ही हो जाता है,
ना शिकायत करता है बेवफाओं से,
और ना ही गुरूर से गुरूर टकराव होता है,
बुला लेता है सपने को एक दिन चाय पे,
और खूब बातें करता है ना पूछता है,
उसके अधूरे रह जाने की वजह,
क्योंकि धीरे - धीरे वो भी यूं ही जीना सीख लेता है........................
स्वरचित
राशी शर्मा