मेरी दुनिया और है तेरी दुनिया और है........................
खुद को ढूढ़ - ढूढ़ कर यहां तक आ गए,
नई ज़मीन पर पैर रखे और आसमान पर छा गए,
तू जैसे तेरी दुनिया का सरताज है,
मैं भी अपनी दुनिया की शहज़ादी हूँ,
भूल जा वो पहले वाला मंज़र,
जहां तू ही तू था और मैं कहीं भी नहीं हूँ...........................
अपना मुकाम देख लिया तो मुड़ कर क्या देखना,
तू चाहे तो खुद के गुरूर को सहलाने के लिए,
कोई गुड़्ड़ा खरीद लेना,
आदत नहीं है शहज़ादे तुझे शिकस्त की,
इसलिए छटपटा रहा है,
शुरूआत में ऐसा होता है,
फिर आदत पड़ जाती है,
तो ज़ख्म का पता नहीं चलता,
और दर्द महसूस होना बंद हो जाता है.............................
एहसास उसी दुनिया के है,
मगर मैं नई हो गई हूँ,
आत्मा वही पुरानी है,
मैं मज़बूत हो गई हूँ,
तू कभी मेरी दुनिया में आना,
मैं कभी तेरी दुनिया में आऊँगी,
इंज़्जत रखना तू मेरी मैं अपना हर वादा निभाऊँगी........................................
स्वरचित
राशी शर्मा