धुंधला अक्स......................................
पहले भी देखा है कई बार उसे,
फिर भी वो सामने आने से झिझकता है,
छुपा रहता है अपनी सोच के पीछे,
ना जाने किस से ड़रता है.........................................................
चेहरे पर कोई कमी नहीं,
व्यकतित्व भी कमाल का लगता है,
भीड़ जुटा लेता है बिना कुछ कहें,
उसे सुनने के लिए ही लोगों का जमघट लगता है.........................
है तो पूरा फिर भी खुद को अधूरा समझता है,
कहता है कोई पूरा नहीं इस जहान में,
वो इसी बात से ड़रता है,
जानता नहीं कि उस बात को उसने गलत ही समझ लिया,
बात तो सही - गलत की थी,
उसने तो कमी को ही गलत समझ लिया.............................
स्वरचित
राशी शर्मा