कुछ लिखती हु मे इसतरह से
जैसे तुमको पा लिया है मैने अपने अल्फाज़ों मे ,
दिल डरता है तुम्हे खोने से
कुछ इस तरह रखा है अपने खयालों मे ,
आज भी इंतज़ार है तेरा
हर रोज नज़रे रहती है उस रस्ते पे ,
ये सवालात है मेरे तेरी आँखों से
क्या आज भी हमे ढूंढती है उस प्यार भारी निगाहों से,
यु कुछ ग़ज़ले है पुरानी जो याद दिलाती है तेरे गुनगुना ने की
पूछती है मुझसे बार बार की कब खत्म होगा ये इंतज़ार ,
यु तो हर रोज आवाज ना होती उन सुनसान
रास्तो मे,
पर आज ऐसे लगता है हर गली का कोना
गुंज रहा है हमारी खिलखिलाहटों से ,
हम तो समझ ना पाये तेरी वो नादानिया
बस चले आये तेरे दर से वापस,
खुद को हि अकेला पाकर.......
Piya❤️