काश...
तुम आज भी अगर साथ होते तो ओर बात थी !
हम यूँही गुनगुनाते होते, जैसे हर रोज़ पहली मुलाक़ात थी !
बकवास हर बात पे हँसते थे हम,
छोटी सी हर बात पर रोते थे हम !
कहे दूँ, आज तुमको, सुनो एक बात,
वो बाँहो में भरना, समझना हर जज़्बात,
पता थी मुझको, तेरी हर खुराफ़ात,
सोना ना ख़ुद, ना सोने देना हर रात !
बहाने से मुझे गले लगाना,
नज़दीकियों से मुझे सताना,
नीदों से कर ली थी दुश्मनी जैसे,
तारों से कर ली थी दिल्लगी वैसे !
सब सही तो नहीं था तब भी, मगर...
भरोसा था तुम पर, आँख मूँदकर !
ना भटकोगे तुम कोई ओर चोखट पर,
जी रहे थे हम तेरी हर बात पर !!!Nidhi
छोड़ा जब तुमने वो चौराहा भी रोया था,
उसी जगह हमने कभी आशियाँ संजोया था !
खैर...दिखाते आज तुम होते अगर,
वैसे...बुरा नहीं तुम बिन ये सफ़र !
मिलोगे कभी, तो अब ना पूछेंगे तुम्हे पुकार कर,
''क्या जीत गए तुम हमे हार कर ?"
आना चाहते हो वापस, पर अब वो डगर नहीं !
पुकारा होता ग़र तुमने, तो हमें पाया होता वहीं !
सालों तक इंतेज़ार किया था हमने,
फिर रास्ता वो चुना जो लगा सही !
कही पे तो रुक कर मुड़ते अग़र,
फैलाकर हाथ किसी मोड़ पर !
बेशक़...चल देते हम हाथ थामकर,
काश... तुम साथ होते अगर ।