प्रातः वंदन,,,
जीवन में हम कितने ही व्यवस्त क्यो न
हो
हर सुबह अपनों की याद आ ही जाती है
पानी दरिया में हो या आँखों में
गहरायी और राज़ दोनों में होते हैं
सिर्फ शब्दों से न करना
किसी के वजूद की पहचान
हर कोई उतना कह नहीं पाता
जितना समझता और महसूस करता है
इसीलिए खामोशी भी एक तहजीब है
ये संस्कारों की खबर देती है
भीड़ कभी समझदार नहीं होती और
समझदार कभी भीड़ में नहीं होता
अंधेरों की साजिशे
रोज रोज होती है
फिर भी उजाले की जीत
हर सुबह रोज होती है
सुप्रभात,...
-SADIKOT MUFADDAL 《Mötäbhäï 》