उलझकर रह गए हम ....
अपने कर्तव्यों के इस भँवर में
एक तरफ़ मेरी कर्मभूमि जो नित
कर्म करने का संदेश दे रही है ।
तो इक ओर मेरे जन्म से जुड़े रिश्ते जो
हर पल निभाए जाने की बाट जो रहे हैं .
डगर बड़ी कठिन है दोनों को साथ लेकर चलने की
नदिया के दो छोर है ये जो साथ होकर भी साथी नहीं
मैं नदिया की अविरल धारा , जिसे कोई रोक न पाया ?
अपने जल की शीतल बौछारों से दोनों के मन को हर्षाया ।