शब्दो की मोह माया में
खेला ऐसा खेल प्रिए
मैं भटकू तुझमें प्रतिदिन
तू मुझको न भेद प्रिय
भिन भिन जो तेवर तेरे
मुझ तक न फेक प्रिय
मोल भाव का बेयपारी हु
कुछ तो मुझमें देख प्रिय
कल की चुन्नी , बिंदी , चूड़ी
उसमे तेरा उल्लेख प्रिय
कंगन , पायल, झुमका
सबपर तेरा लेख प्रिय
फिर कही जो पहने लाल अंगूरी
उस पल न देख प्रिय
अंग अंग जो खिलता तेरा
जैसे अपशरा में एक प्रिय
तेरा रूप श्रृंगार साजा कर
चल पहुंचा दू तुझको तेरे जैसे देश प्रिय
जहा न मुझसा प्रेमी होगा
न तुझ सा हीन प्रिय
शब्दो की मोह माया में
खेला ऐसा खेल प्रिए
मैं भटकू तुझमें प्रतिदिन
तू मुझको न भेद प्रिय
-@njali