😥विभीषिका आजादी की...😥
है नहीं आजादी हऽमारी,
ये सिंहासन की मारी थी।
इसे आजादी का नाम न दो,
ये लोलुपता की क्यारी थी।।..नहीं...
निर्दोषों के लहु सनी,
न हमको कभी ये प्यारी थी।
बन आया अभिषाप देश में,
खंडित करने की मनमानी थी।।..नहीं...
ले नेहरू-जिन्ना का वेश,
करम की ऐसी सानी थी।
रोक ना पाया चरखा कोई,
कुछ बापू की मेहरबानी थी।।..नहीं...
लुटी थी न जाने कितनों की,
अस्मत माँ-बेटी-बहनों की।
सत्ताओं ने ठानी थी,
नहीं अचानक से आया था...
ये षड्यंत्र पुरानी थी।।..नहीं...
क्रमशः.....✍️
#सनातनी_जितेंद्र मन कहेन