ठहरी सी है
लिखती नहीं
मन की बात
उकेरती है
मन के भीतर
कई ख्याल
बिन स्याही
आकार नहीं लेते
ख्याल
सूखाग्रस्त मौन
पसर रहा है
शब्द विहिन।
ख्याल बिना
बाते बनें ही
डर कर
छिप जाते है
बैरंग हो
सराबोर है
माहौल भले ही
रंगों से
पर मन
भीतर ही भीतर
रंगहीन हो गया है
भीड़ का शोर भी
सुनाई नहीं देता
चारों ओर
चर्चा है
होली है ।
अल्पना
-Alpana harsh