भोर जन्म का उत्सव हो
सांझ का मरण मनाओ।।
.. आओ त्यौहार एक ऐसा भी मनाओ...
स्वप्न भरी इस निशा से खुद को जगाओ।
खुशीयों का स्वागत कर दुःख को भगाओ।।
........ आओ त्यौहार इक...
भरी दुपहरी लादे बांध के ठठरी...
ख्वाहिशों की गठरी से खुद को छुड़ाओ।।
....... हाँ बाबू त्यौहार इक....
रूठे कुछ अपनों को टूटे कुछ सपनों को।
रात को भूलाकर सुबह लौट आओ।।
...... अरे बहिनी त्यौहार इक......
दिनभर जो पाप किया वो प्रभु को सुनाओ।
प्रार्थना ऐसी हर भोर किए जाओ....।।
....सही में भैय्या त्यौहार इक.........
-सनातनी_जितेंद्र